दूर से चमकीली रेत भी पानी नज़र आती है,
मुरझाएं गुलाब की पत्तिया भी भीनी खुशबु छोड़ जाती है ।
रिश्तें छूट जातें है, नाते टूट जातें है,
पर उनकी याद हमेशा दिल में रह जाती है ।
आगे बढ़कर पीछे मुड़ना मेरी फितरत नही ,
फिर क्यों उस कल को सामने देख आँखे नम हो जाती है ।
शायद वो गम नही वो खुशिया याद आ जाती है ।
इसी कशमकश में क्या याद रखु क्या भूलू हर रात बीत जाती है ।
सुबह के सन्नाटें में चिडिया की चहचाहट फिर एक उम्मीद जगाती है ,
कल की मुस्कराहट को याद कर ,उस दर्द को भूल जा , अपने आज को सवार , आनेवाले कल के लिए नई यादों को सजा, यही अक्ल दोहराती है ,
पर इस नासमझ मनन की हलचल का क्या करू , जो फिर मुझे उस बीतें कल में छोड़ आती है ।**